भगवती की कृपा से बच्चा दूसरे दिन ही ठीक हो गया। तब रूक्को ने देवी के मन्दिर में ही जाकर पंडित से कहा कि उसे अपने घर माता का जागरण करना है, अत: वे मंगलवार को उसके घर पधार कर कृतार्थ करें। पंडित जी बोले कि वहीं पांच रूपये देती जाये। पण्डित जी उसके नाम से मन्दिर में ही जागरण करवा देंगे।क्योकि वह एक नीच जाति की स्त्री है, इसलिए वे उसके घर में जाकर देवी का जागरण नहीं कर सकते। रूक्को ने कहा कि माता के दरबार में तो ऊंच-नीच का कोई विचार नहीं होता। वे तो सब भक्तों पर समान रूप से कृपा करती हैं। अत: उनको कोई एतराज नहीं होना चाहिए। इस पर पंडित ने आपस में विचार करके कहा कि यदि महारानी उसके जागरण में पधारें; तब तो वे भी स्वीकार कर लेंगे।
यह सुनकर रूक्को महारानी के पास गई और सब वृतान्त कर सुनाया। तारामती ने जागरण में सम्मिलित होना सहर्ष स्वीकार कर लिया। जिस समय रूक्को पंडितो से यह कहने के लिये गई महारानी जी जागरण में आवेंगी, उस समय सेन नाम का नाई वहाँ मौजूद था। उसने सब सुन लिया और महाराजा हरिश्चन्द्र को जाकर सूचना दी। राजा को सेन नाई की बात पर विश्वास नहीं हुआ कि महारानी भंगियों के घर जागरण में नहीं जा सकती हैं।फिर भी परीक्षा लेने के लिये उसने रात को अपनी उंगली पर थोड़ा सा चीरा लगा लिया, जिससे नींद न आए।
रानी तारामती ने जब देखा कि जागरण का समय हो रहा है, परन्तु महाराज को नींद नहीं आ रही तो उसने माता वैष्णों देवी से मन ही मन प्रार्थना की कि माता, किसी उपाय से राजा को सुला दें ताकि वो जागरण में सम्मिलित हो सके। राजा को नींद आ गई, तारामती रोशनदान से रस्सा बांधकर महल से उतरीं और रूक्को के घर जा पहुंची। उस समय जल्दी के कारण रानी के हांथ से रेशमी रूमाल तथा पांव का एक कंगन रास्ते में ही गिर पड़ा, उधर थोड़ी देर बाद राजा हरिश्चन्द्र की नींद खुल गई। वह भी रानी का पता लगाने निकल पड़े। उन्हें मार्ग में रानी का कंगन व रूमाल दिखा। राजा ने दोनो चीजें रास्ते से उठाकर अपने पास रख लीं और जागरण हो रहा था, वहां जा पहुँचे और वह एक कोने में चुपचाप बैठकर दृश्य देखने लगा। जब जागरण समाप्त हुआ तो सबने माता की अरदास की, उसके बाद प्रसाद बांटा गया, रानी तारामती को जब प्रसाद मिला तो उसने झोली में रख लिया। यह देख लोगों ने पूछा कि उन्होंने वह प्रसाद क्यों नहीं खाया ?
यदि रानी प्रसाद नहीं खाएंगी तो कोई भी प्रसाद नहीं खाएगा। रानी बोली कि पंडितों ने प्रसाद दिया, वह उन्होंने महाराज के लिए रख लिया था। अब उन्हें उनका प्रदान करें। प्रसाद ले तारा ने खा लिया। इसके बाद सब भक्तों ने माँ का प्रसाद खाया, इस प्रकार जागरण समाप्त करके, प्रसाद खाने के पश्चात् रानी तारामती महल की तरफ चलीं।
तब राजा ने आगे बढ़कर रास्ता रोक लिया और कहा कि रानी ने नीचों के घर का प्रसाद खाकर अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया था। अब वे उन्हें अपने घर कैसे रखें ? रानी ने तो कुल की मर्यादा व प्रतिष्ठा का भी ध्यान नहीं रखा। जो प्रसाद वे अपनी झोली में राजा के लिये लाई थीं; क्या उसे खिला कर वे राजा को भी अपवित्र करना चाहती थीं ?
ऐसा कहते हुऐ जब राजा ने झोली की ओर देखा तो भगवती की कृपा से प्रसाद के स्थान पर उसमें चम्पा, गुलाब, गेंदे के फूल, कच्चे चावल और सुपारियां दिखाई दीं यह चमत्कार देख राजा आश्चर्यचकित रह गया, राजा हरिश्चन्द्र रानी तारा को साथ ले महल लौट आए, वहीं रानी ने ज्वाला मैया की शक्ति से बिना माचिस या चकमक पत्थर की सहायता के राजा को अग्नि प्रज्वलित करके दिखाई, जिसे देखकर राजा का आश्चर्य और बढ़ गया।
रानी बलीं कि प्रत्यक्ष दर्शन पाने के लिऐ बहुत बड़ा त्याग होना चाहिए। यदि आप अपने पुत्र रोहिताश्व की बलि दे सकें तो आपको दुर्गा देवी के प्रत्यक्ष दर्शन हो जाएंगे। राजा के मन में तो देवी के दर्शन की लगन हो गई थी, राजा ने पुत्र मोह त्यागकर रोहिताश्व का सिर देवी को अर्पण कर दिया। ऐसी सच्ची श्रद्धा एवं विश्वास देख दुर्गा माता, सिंह पर सवार हो उसी समय प्रकट को गईं और राजा हरिश्चन्द्र दर्शन करके कृतार्थ हो गए, मरा हुआ पुत्र भी जीवित हो गया।
चमत्कार देख राजा हरिश्चन्द्र गदगद हो गये, उन्होंने विधिपूर्वक माता का पूजन करके अपराधों की क्षमा माँगी। सुखी रहने का आशीर्वाद दे माता अन्तर्ध्यान हो गईं। राजा ने तारा रानी की भक्ति की प्रशंसा करते हुऐ कहा कि वे रानी के आचरण से अति प्रसन्न हैं। उनके धन्य भाग, जो वे उसे पत्नी रूप में प्राप्त हुईं।
आयुपर्यन्त सुख भोगने के पश्चात् राजा हरिश्चन्द्र, रानी तारा एवं रूक्मन भंगिन तीनों ही मनुष्य योनि से छूटकर देवलोक को प्राप्त हुये।
माता के जागरण में तारा रानी की कथा को जो मनुष्य भक्तिपूर्वक पढ़ता या सुनता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, सुख-समृद्धि बढ़ती है, शत्रुओं का नाश होता है।इस कथा के बिना माता का जागरण पूरा नहीं माना जाता।